Thursday, July 15, 2010

मेरे सपनो का जहान


मेरा मन भटकता चला जा रहा था,
दुढ़ता फिर रहा था सपनो के जहान को,
जहा सुरमई सुबह के साथ होती थी सबकी शुरुआत,
पलक झपकते होती झिलमिल खुशियों की शरुआत,
आता याद मुझे अपने सपनो का जहान,
जहा के लोगो की ताकत थी उनकी मुस्कान,
सभी करते एक दुसरे से मोहबत का व्यवहार,
ऐसा हे मेरे सपनो का जहान,
किसइ होती है माँ की ममता,
इसकी झलक मिल जाती है यहाँ,
सीधे साधे भोले भले भाईचारे की ताकत को अपनाकर जीने वाले,
ऐसे है मेरे सपनो के मतवाले,
पर जब पड़ती है नज़र बुरी ताकतों वाली,
घिर जाते है काले बदरा मेरे सपने के जहान पर,
सहम जाता है मेरा दिल,
फिर याद आता है मुझे ज़िन्दगी का एक अफसाना,
सपनो की दुनिया होती है खिले फूलों की तरह,
जिसकी खुशबु से तो महकता है यह गुलशन सदा,
पर मुरझाये फूलों को कोई नहीं अपनाता ,
और रौंदा जाता है पैरों से ,
इसलिए कहते हैं, सपनों में जीने वाले ......
यह दुनिया नहीं होती खुशियों वाली ...
जो लगता है सच का दर्पण ..........
पलक झपकते वो आइना टूट जाता है.................






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