"माँ "
केसे भूलु मैं वो दिन जब माँ मेरे पास थी,जब कभी मैं रूठ जाती तो प्यार से मुझे मनाती,
वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी,
जब कभी ना सो पाऊ वो लोरी गाके सुनाती थी,
वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी,
जब कभी मैं खाऊ न वो पीछे पीछे आती थी,
वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी,
जब कभी रोती थी मैं वो प्यार से सहलाती थी,
वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी,
जब कभी हस्ती थी वो फूली नहीं समाती थी,
वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी,
क्यों किया विदा तूने मुझे डोली में बिठा कर के,
रोई तो मैं बहुत थी फिर भी न रोका तूने मुझे
ससुराल मैं.
आज जब मैं रोती हूँ तो कोई मनाता नहीं,
आज न सो पाऊ अगर मैं तो कोई लोरी गाता नहीं,
आज जब मैं रूठ जाऊ कोई मनाता नहीं,
आज न खाऊ जो मैं तो कोई खिलाता नहीं,
आज मैं उदास हूँ तो क्यों तू आती नहीं,
क्यों तो अपने साथ मुझे वापिस ले जाती नहीं,
माँ.
सुनती हूँ पुकार तेरी लेकिन मैं मजबूर हूँ,कोई नहीं मेरा मैं गमो से चूर हूँ,
ना साया है पति का न बीटा मेरे साथ है,
दुनिया कि जो रीत है उससे मैं मजबूर हूँ,
चाहती हूँ पास रखना लेकिन दुनिया से मजबूर हूँ,
आज मैं पछताती हूँ,
क्यों रूठी को मनाया मैंने,
क्यों लोरी गाके सुनाया मैंने,
क्यों प्यार से सहलाया मैंने,
क्यों लाड सरे लड़ाए मैंने,
क्यों मैं भूल गई मैं तू तो पराई है,
मेरे घर तो केवल मेहमान बन के आई है।
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