Wednesday, August 7, 2013

पुरानी पहचान संग मेरा साथ……।

रोज़मरा की हमारी ज़िन्दगी के इस उतार चढ़ाव मैं हम अपने सपनो को भूल ही जाते है, क्या वाकई हम अपने लिए जीते है, अगर हां तो हमारे अपने हमे बीच रास्ते मैं क्यों छोड़ जाते है, और जब उनका साथ हमे अपनी ताकत लगता है असल मैं वो हमारी कमजोरी बन जाती है, मैं तो ऐसे कस्मकस मैं फसी हु जैसे मेरे अन्दर एक तूफान सा उठा है, वाकई मैं अपने सपनो को जी रही हु या उन रास्तो पर चल रही हु, जो वाकई मेरा है ही नहीं, किसी की चाहत बनने का सपना देखा था मैंने, पर किसी की छाया बन कर आगयी हु, मैं तो हमेसा अपने सपनो मैं जीने वाली लड़की थी पर अब मेरे सपने दूर से ही मुझे अपनी अक्स का साया दिखा जाते है, आज मैं अपने सपने के शहर मैं हु, पर जाने ऐसा क्यों लगता है, जैसे अकेले ही चले जा रही हु, अब तो आदत सी हो गयी है अकेले जेने मैं, तभी तो हर पल मुझे न डर साता है और न ही किसी के खोने का गम है मुझे, पर ज़िन्दगी से एक सवाल पूछना है मुझे, तू मेरे साथ हमेसा मेरी ताकत बन के रही पर खुद तो साबित करने के लिए मुझे खुद को क्यों खोना पड़  रहा है, मेरी एक ही आस थी जैसी हु वैसी ही रहू, मुस्कुराता हुआ मेरा चेहरा मेरे अपनों को मेरी पहचान बाया कर देती थी पर आज मुझे खुद खुशी का पल अंजना सा लगने लगा है, हमेसा खुश रहने वाली शिवाली आज कहा गुम हो गयी है किसी को नहीं पता, पर शायद वो पल मेरा आएगा जब मैं फिर से जीने के पल को जी सकू, हमेसा मुस्कुराने वाली शिवाली फिर से एक बनावटी
हसी के साथ नहीं बल्कि उस मुस्स्कन के साथ सबके रूबरू हो, जो उसकी वाकई पहचान थी कभी.… ………।



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