Tuesday, November 26, 2013

आतंक के साये के पाँच सालो का दर्द

पाँच सालो से जिस दर्द को सहकर मुम्बई का हर इंसान जी रहा है, आज के दिन को कभी भूल नहीं सकता है। बाहरी नज़रो ने हमारे इस मायानगरी को आतंक का निशाना  बनाया और मासूमों को मौत के घाट उतार दिया था। 
26/11 इस तारीख से मुम्बई के हर इंसान का रिस्ता जुड़ गया है, जिन्होंने अपनों को खोया और जिन्होंने उस डर के साये मै खुद को छुपा लिया था। आतंक का वो खेल जिसने अपनी आँखो से देखा उसकी रूह उन दरिंदो को हमेसा इस दुनिया मैं ढूढ़ती रहेगी।

लेकिन हमें ज़िन्दगी देने वालो को हम कभी नहीं भूल सकते, उन पुलिस वालो को हमारा सलाम है। 

आज हमें बस फैसले का इंतज़ार है, कब यह साबित हो कि किसको इंसानियत से नफरत है, किसको खुदा  के बन्दों से नफरत है, कौन इस दुनिया को अँधेरा देना चाहता है, हम सब भगवान और खुदा के बच्चे है, जिनको प्यार से हर रिश्तो को निभाना का वरदान मिला है, तो इस वरदान को क्यों भुला देना चाहते है हम, दुनिया रोशन रहे, आबाद रहे, यही दुआ करते है हम........

मेरे दुश्मन मेरे भाई मेरे हमसाये, आयो ऐसा एक देश बनाये, जिसमे प्यार बसता हो, अमन-शांति का बसेरा रहता हो…… 




Thursday, November 21, 2013

वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी.......


"माँ " 

केसे भूलु मैं वो दिन जब माँ मेरे पास थी,  
जब कभी मैं रूठ जाती तो प्यार से मुझे मनाती,

वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी,
जब कभी ना सो पाऊ वो लोरी गाके सुनाती थी, 
वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी,


जब कभी मैं खाऊ न वो पीछे पीछे आती थी, 
वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी,
जब कभी रोती थी मैं वो प्यार से सहलाती थी,

वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी,
जब कभी हस्ती थी वो फूली नहीं समाती थी,
वो समय ही बस समय था जब माँ मेरे पास थी,
क्यों किया विदा तूने मुझे डोली में बिठा कर के,
रोई तो मैं बहुत थी फिर भी न रोका तूने मुझे 


ससुराल मैं.


आज जब मैं रोती हूँ तो कोई मनाता नहीं,
आज न सो पाऊ अगर मैं तो कोई लोरी गाता नहीं,
आज जब मैं रूठ जाऊ कोई मनाता नहीं,
आज न खाऊ जो मैं तो कोई खिलाता नहीं,
आज मैं उदास हूँ तो क्यों तू आती नहीं,
क्यों तो अपने साथ मुझे वापिस ले जाती नहीं,


माँ.

सुनती हूँ पुकार तेरी लेकिन मैं मजबूर हूँ,
कोई नहीं मेरा मैं गमो से चूर हूँ,
ना साया है पति का न बीटा मेरे साथ है,
दुनिया कि जो रीत है उससे मैं मजबूर हूँ,
चाहती हूँ पास रखना लेकिन दुनिया से मजबूर हूँ,
आज मैं पछताती हूँ,
क्यों रूठी को मनाया मैंने,
क्यों लोरी गाके सुनाया मैंने,
क्यों प्यार से सहलाया मैंने,
क्यों लाड सरे लड़ाए मैंने,
क्यों मैं भूल गई मैं तू तो पराई है,
मेरे घर तो केवल मेहमान बन के आई है।